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वर्तमान समय में सम्पूर्ण विश्व में साम्प्रदायिकता, साम्प्रदायिक हिंसा, भेद-भाव किसी न किसी रूप में देखने को मिल जाते है, शायद भूत कल में भी ये सब रहें हों परन्तु क्या यह उचित होगा कि भविष्य में भी हों !
आज कि शिक्षित पीढ़ी भी किसी न किसी रूप में इन सब को बढ़ावा दे रही है |
धार्मिक विवाद अभी भी उसी जगह है या उससे भी ज्यादा बढ़ गए है, जैसे पहले थे !
अब प्रश्न उठता है कि क्या ऐसे विवाद मानव कल्याण के लिए उचित है ?
क्या किसी धर्म का प्रचार तभी हो सकता है जब दूसरे धर्म के लोगों में दर उत्पन्न किया जय या उन्हें लोलुपता में फंसाया जाय ?
क्या किसी धर्म के अनुयायियों को ये शोभा देता है कि वे किसी अन्य धर्म के अनुयायियों का तिरस्कार करें ?
क्या किसी नही धर्म का उपहास उड़ाना अशोभनीय नहीं है ?
“क्या सबसे बड़े धर्म इंसानियत का पतन कर कथित या बनाये हुए धर्म को निभाना उचित है ?”
मुझे यह देख कर दुःख होता है कि इन सब कार्यों को करने वाले किसी भी धर्म के ” धार्मिक ठेकेदार ” ही होते है, जिन्हें धर्म के बारे में सबसे अधिक जानकारी होती है |
वे ये जानते है कि वे गलती कर रहें है या उनसे गलती हो रही है, परन्तु अपने स्वार्थ के लिए वे इन सब कामों को अंजाम देने से नहीं चूकते है |
“कहीं न कहीं यह मनुष्य के स्वाभाव के अनुसार ही है , मनुष्य अपना ही भला चाहता है उसमे स्वः प्रवृति जन्मजात होती है”
मनुष्य से समाज बनता है और समाज से धर्म , समाज ही धर्म का अनुयायी |
समाज के लोग ही दूसरे धर्म का निर्माण करते है |
“जब दो धर्म समाज में होते है तो वे एक दूसरे कि कमियों के पूरक होते है |”
धार्मिक बंधन मनुष्यों ने बनाया है और उसमे कमियां होना सामान्य है , मानव निर्मित सभी चीजों में कमियां अवश्य होती है क्योंकि मनुष्य स्वयं पूर्ण नहीं है !
फिर उन्ही कमियों का मजाक बनाया जाता है , एक दूसरे को नीचे दिखने का प्रयत्न होता है |
“मनुष्य का स्वाभाव ही ऐसा है कि वह सभी पर अपना अधिकार चाहता है यह भी साम्प्रदायिकता का महत्वपूर्ण कारण है |”
वर्तमान साम्प्रदायिकता, स्वार्थ से उत्पन्न है| किसी भी छोटी सी घटना को साम्प्रदायिक घटना में बदलना कितना आसान है |
” हर छोटा सा घाव एक दिन नासूर बन जाता है ”
साम्प्रदायिकता भी उसी प्रकार है यदि इसका इलाज न किया गया तो इसके भयानक परिणाम होंगे |
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