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धर्म युद्ध

Arsh
Arsh
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आज कल मेरे मन में कुछ प्रश्न उठाते है, शायद आपके मन में भी उठते होंगे?
समाज,देश,विश्व में इतनी प्रगति के बाद भी संघर्ष हो रहे है|
सामान्य संघर्ष तो होते ही रहते है परन्तु जब बात आती है धार्मिक संघर्ष की तो वर्तमान की तस्वीर ज्यादा भयवाह है |
विश्व के अनेक देश साम्प्रदायिकता का शिकार है, जिन में ताज़ा उदाहरण है सीरिया !
मनुष्य धर्म तो हमेशा से मानता आ रहा है परन्तु जो स्थिति आज है वह काफी चिंता जनक है |
आज मनुष्य बिना धर्म को जाने, धर्म के लिए लड़ रहा है क्या यह मूर्खता नहीं है ?
अगर सोंचा जय तो धर्म एक सामाजिक बंधन है जो हमे अनैतिक कार्यों से रोकता है |
या
समाज के बनाये गए नियम हैं |
या
जीवन को व्यवस्थित तरीके से जीने व समाज के कल्याण के नियम है |

परन्तु आज के परिदृश्य में धर्म सिर्फ ईश्वर प्रार्थना, देवी देवताओं तक सिमित हो गया है |
आज धर्म स्वार्थ सिद्धि का एक जरिया बन गया है |

विश्व के सभी धर्म मानवता के कल्याण के लिए बने परन्तु कुछ समय बाद उनके अनुयायियों के कारण मनुष्य के विनाश का कारक बन रहे है |
जीवों की तरह धर्म भी नश्वर है, उसका भी परिवर्तन या नव उदय होता है |
धर्म का उद्देश्य मानव कल्याण है उसका पतन नहीं|

यदि किसी धर्म के अनुयायी किसी दूसरे धर्म को समाप्त करने को सोंचते है या प्रयत्न करते है तो उनके स्वयं के धर्म का अंत निश्चित है |
धर्म को जानना चाहिए ,
” धर्म भगवान से नहीं इंसानो से बनता है ”

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