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आलम्बन – प्रेम गीत

Arsh
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चित तेरा आलम्बन करके सपने बुनता है,
इस कोमल सदृश्य ह्रदय में तू ही बसता है!
चित तेरा………….
प्रातः काल किरण पहली , तू मिल जाता है ,
सूरज किरण आखरी ,संग तू चला जाता है !
हास्य और बातों में ,दिन गुजर जाता है ,
बिछड़न तेरा ह्रदय में ,आखिर “टीस” उठा जाता है !!
चित तेरा…………………..
सोंचा है अब जाने न दूँगा , पास तुझे रख लूँगा मै,
प्रेम ह्रदय में संचित है जो ,न्योछावर कर दूँगा मै ,
आज “दिवाकर ” से कह दूंगा , रश्मियों को मत ले जाये,
वो “वात्सल्य” प्रेमी कब सुनता है !!
चित तेरा ………..
रात आज देखा इक सपना, तुमको होते देखा अपना ,
प्रकृति का शृङ्गार अमल था , भंवरों का गुंजार विमल था ,
खुशियों – दुःख संग जीवन बीत रहा था , गता ह्रदय प्रेम गीत रहा था,
उषाकाल टूटा सपना , सपना सच हो न सका अपना!!
चित तेरा ………………………….

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