Arsh
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ये शाम बसन्ती आई हैँ, मन उथल पुथल सा व्याकुल है ।
खग मोहनी धुन अब सोहे ना, मखमली मलय अब भावे ना,
हे प्रिये तुम्हारी स्मृति मे, कुछ याद हमे अब आवे ना |
मन अतृप्त है, भारी पीँङ प्रिये, चुभ रहा है, कण्टक शूल हिये,
निरखि तुम्हारी राह, हो रहीँ है आखेँ अधीर सखे ।
ये शाम बसन्ती आई हैँ, मन उथल पुथल सा व्याकुल है |
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